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ज़्यादातर उदासी
खर्च हो चुकी होती है
चालीस की उम्र तक
बची- खुची में भी पुरानापन आ जाता है
जैसे पुरानी किताबों के पन्नों की रंगत
या पुराने नोटों की गंध
अब उदास होने का
न तो समय है न ही इच्छा
अच्छा भी तो नहीं लगता
उदास होना
लोगबाग क्या कहेंगे
चालीस पार का आदमी और उदास
कोई पूछता भी नहीं
उदासी का सबब
लोग सोच ही नहीं पाते
कि चालीस पार का आदमी
उदास भी हो सकता है
दुखी या हैरान होना अलग बात है
कभी छुपकर
कोशिश करता भी हूँ तो
कामयाबी नहीं मिलती
ठीक से नहीं आती उदासी
चिंताएं आ जाती हैं
दुःख आ जाता है
निराशा, हताशा सब आती हैं बारी- बारी
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हमेशा की तरह
इस बार भी
बहुत देर कर चुका हूँ मैं
उदास होने का
सबसे अच्छा समय
बहुत पहले बीत चुका है
~ राजीव ध्यानी
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