यथा खनित्वा खनित्रेण भूतले वारि विन्दति। तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रुषुरधिगच्छति॥
जैसे फावड़े से खोदकर भूमि से जल निकाला जाता है, इसी प्रकार सेवा करनेवाला विद्यार्थी गुरु से विद्या प्राप्त करता है ।
विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः। भाण्डारी च प्रतिहारी सप्तसुप्तान् प्रबोधयेत॥
विद्यार्थी, सेवक, पथिक, भूख से दुःखी, भयभीत, भण्डारी, द्वारपाल – इन सातों को सोते हुए से जगा देना चाहिए ।