भूकम्प अर्थात् भूमि का कम्पन! पृथ्वी का अपनी धुरी पर हिलना डुलना, कम्पन करना भूकम्प या भूचाल कहलाता है। सामान्यतः भूमि अपनी धुरी पर हिलती है तो उससे भूकम्प नहीं आते मगर जब धरती के नीचे सब कुछ अधिक पैमाने पर होता है तो पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा बुरी तरह प्रभावित होता है।
भूकम्प की तीव्रता पर निर्भर करता है कि नुकसान या विनाश कितना होगा। हम सबने अपने जीवन में एक या उससे अधिक बार भूकम्प के झटके महसूस किए हैं। जब सभी भूकम्प का कोई हल्का सा झटका आता है तो हम डर जाते हैं और अपने अपने घरों से बाहर आ जाते हैं। सब कुछ हिलने लगता है और कुछ ही क्षणों में सामान्य हो जाता है। मगर तेज भूकम्प आने पर कुछ भी बाकी नहीं बचता।
गगनचुम्बी इमारतें, भवन सब ढर्रा कर गिर पड़ते हैं, मिट्टी के ढेर में बदल जाते हैं। लोग घरों के अन्दर दब जाते हैं। चारों ओर हाहाकार मच जाता है। परिवार के परिवार, शहर के शहर कब्रगाह बन जाते हैं। लोग जिन्दा दफन हो जाते हैं। पेड़ पौधे, पशु पक्षी सब पृथ्वी के गर्त में समा जाते हैं।
26 जनवरी 2001 में महाराष्ट्र एवं गुजरात में बहुत भयंकर भूकम्प आया था जिसमें हजारों लोग मर गये थे। अक्टूबर 2004 में कश्मीर और पाकिस्तान में आया भूकम्प और भी ज्यादा विनाशकारी था।
हम कल्पना में भूकम्प पीड़ितों के दुखों का अनुमान नहीं लगा सकते। किन्तु दूरदर्शन पर देखकर और समाचार पत्र पढ़ कर हमें ज्ञात होता है कि उनके साथ क्या घटित हुआ।
सब अपने परिवारों से बिछुड़ जाते हैं। घरबार, धन दौलत सब कुछ समाप्त हो जाता है। भूखे प्यासे लोग, आकाश के नीचे, ओढ़ने पहनने को कुछ नहीं होता, सुख सुविधा कुछ भी नहीं होती, यह सोच कर ही दिल दहल जाता है।
जापान में प्रायः भूकम्प आते रहते हैं अतः वहाँ लकड़ी के मकान बनाये जाते हैं जिससे जान माल का नुकसान कम हो। भूकम्प के समय पीड़ितों की सहायता करने के लिये सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थायें सामने आती हैं। ऐसे समय पीड़ित लोगों को वास्तविक राहत व सहायता की जरूरत रहती है।
हमें प्रकृति के इस विनाशकारी रूप का सामना कभी भी हो सकता है। अतः भूकम्प के समय अपना बचाव कैसे करें सभी को पता होना चाहिये एवं इमारत बनाने से पूर्व भूकम्प से बचने के लिये किये जाने वाले उपाय कर लेने चाहिये।