ईवीएम मशीनों के लेकर विवाद जारी है. गुजरात चुनाव हो या उत्तरप्रदेश चुनाव, पंजाब हो या मध्यप्रदेश उपचुनाव, ईवीएम में छेड़छाड़ और ईवीएम से किसी एक ही पार्टी के पक्ष में मतदान रजिस्टर होने की घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं. ऐसे में चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है.
ईवीएम मशीन कैसे काम करती है?
मतदान के लिए प्रयोग की जाने वाली ईवीएम मशीन में दो इकाइयां होती हैं- कंट्रोल यूनिट और बैलटिंग यूनिट। ये दोनों इकाइयां आपस में पांच मीटर के तार से जुड़ी होती हैं। कंट्रोल यूनिट चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त पोलिंग अफसर के पास होती है। बैलटिंग यूनिट मतदान कक्ष में होती है जिसमें मतदाता अपने वोट देते हैं। मतदाता पूरी गोपनीयता के साथ अपने पसंदीदा उम्मीदवार और उसके चुनाव चिह्न को वोट देते हैं।
कंट्रोल यूनिट ईवीएम का “दिमाग” होती है। बैलटिंग यूनिट तभी चालू होती है जब पोलिंग अफसर उसमें लगा “बैलट” बटन दबाता है। ईवीएम छह वोल्ट के सिंगल अल्काइन बैटरी से चलती है जो कंट्रोल यूनिट में लगी होती है। जिन इलाकों में बिजली न हो वहाँ भी इसका सुविधापूर्वक इस्तेमाल हो सकता है।
मतदान में ईवीएम का इस्तेमाल कब से शुरू हुआ?
चुनाव आयोग ने 1982 में केरल विधान सभा चुनाव के दौरान पहली बार ईवीएम का व्यावहारिक परीक्षण किया। जनप्रतिनिधत्व कानून (आरपी एक्ट) 1951 के तहत चुनाव में केवल बैलट पेपर और बैलट बॉक्स का इस्तेमाल हो सकता था। हालांकि आयोग ने संविधान संशोधन का इंतजार किए बगैर आर्टिकल 324 के तहत मिली आपातकालीन अधिकार का इस्तेमाल करके केरल की पारावुर विधान सभा के कुल 84 पोलिंग स्टेशन में से 50 पर ईवीएम का इस्तेमाल किया।
ईवीएम के सामने पहली चुनौती कब खड़ी हुई?
सीपीआई उम्मीदवार सिवान पिल्लई ने केरल हाई कोर्ट में एक रिट पिटिशन दायर करके ईवीएम् के इस्तेमाल पर सवाल खड़ा किए। लेकिन जब पिल्लई 123 वोटों से चुनाव जीत गए तो कांग्रेसी उम्मीदवार जोस हाई कोर्ट पहुंच गए। हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया। जोस ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा बैलट पेपर से चुनाव कराने का आदेश दिया। दोबार चुनाव हुए तो जोस जीत गए।
सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। 1988 में आरपी एक्ट में संशोधन करके ईवीएम के इस्तेमाल को कानूनी बनाया गया। नवंबर 1998 में मध्य प्रदेश और राजस्थान की 16 विधान सभा सीटों (हरेक में पांच पोलिंग स्टेशन) पर प्रयोग के तौर पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। वहीं दिल्ली की छह विधान सभा सीटों पर इनका प्रयोगात्मक इस्तेमाल किया गया। साल 2004 के लोक सभा चुनाव में पूरे देश में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ।
किन देशों ने छोड़ दिया है ईवीएम का इस्तेमाल?
जर्मनी और नीदरलैंड ने पारदर्शिता के अभाव में ईवीएम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इटली को भी लगता है कि ईवीएम से नतीजे प्रभावित किए जा सकते हैं। आयरलैंड ने तीन सालों तक ईवीएम पर शोध में पांच करोड़ 10 लाख पाउंड खर्च करने के बाद इनके इस्तेमाल का ख्याल छोड़ दिया। अमेरिका समेत कई देशों में बिना पेपर ट्रेल वाले ईवीएम पर रोक है।
पहले भी लगते रहे हैं ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप
गुजरात चुनाव में एक बार फिर ईवीएम से छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आईं हैं. कई बूथों से खबर मिली की ईवीएम मशीन में कांग्रेस वाला बटन काम नहीं कर रहा है. इस विवाद ने एक बार फिर से ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर चल रही बहस को हवा दे दी है.
उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे के तुरंत बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने ईवीएम की भूमिका पर सवाल उठाए थे. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कहा था कि अगर किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष ने ईवीएम पर सवाल उठाए हैं तो उसकी जांच कराई जानी चाहिए.
मध्यप्रदेश के भिंड ज़िले के अटेर में ईवीएम मशीन के डेमो के दौरान किसी भी बटन को दबाने पर वीवीपैट पर्चा भारतीय जनता पार्टी का निकलने के बाद ज़िले के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को हटा दिया गया था.
पंजाब विधानसभा के नतीजों पर आम आदमी पार्टी ने ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे जिन्हें चुनाव आयोग ने ख़ारिज कर दिया.
हालांकि चुनाव आयोग ने इन आरोपों पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा था लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इसे विरोधी दलों की हताशा बताया था.
भाजपा भी कर चुकी है ईवीएम मशीनों का विरोध
भारतीय जनता पार्टी इन दिनों ईवीएम के इस्तेमाल का समर्थन कर रही है, लेकिन वह इसका विरोध करने वाली सबसे पहली राजनीतिक पार्टी थी. 2009 में जब भारतीय जनता पार्टी को चुनावी हार का सामना करना पड़ा, तब पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सबसे पहले ईवीएम पर सवाल उठाए थे.
इसके बाद पार्टी ने भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों, कई गैर सरकारी संगठनों और अपने थिंक टैंक की मदद से ईवीएम मशीन के साथ होने वाली छेड़छाड़ और धोखाधड़ी को लेकर पूरे देश में अभियान चलाया.
इस अभियान के तहत ही 2010 में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रवक्ता और चुनावी मामलों के विशेषज्ञ जीवीएल नरसिम्हा राव ने एक किताब लिखी- ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?’
इस किताब की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखी और इसमें आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडू का संदेश भी प्रकाशित है.
इतना ही नहीं पुस्तक में वोटिंग सिस्टम के एक्सपर्ट स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डेविड डिल ने भी बताया है कि ईवीएम का इस्तेमाल पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने किताब की शुरुआत में लिखा है- “मशीनों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है, भारत में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन इसका अपवाद नहीं है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक उम्मीदवार को दिया वोट दूसरे उम्मीदवार को मिल गया है या फिर उम्मीदवारों को वो मत भी मिले हैं जो कभी डाले ही नहीं गए.”
क्या हैकिंग संभव है?- दुनिया के एक्सपर्ट्स की राय
मई 2010 में अमरीका के मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनके पास भारत की ईवीएम को हैक करने की तकनीक है. शोधकर्ताओं का दावा था कि ऐसी एक मशीन से होम मेड उपकरण को जोड़ने के बाद पाया गया कि मोबाइल से टेक्स्ट मैसेज के जरिए परिणामों में बदलाव किया जा सकता है.
हालांकि पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति की अलग राय है. उन्होंने कहा है, “जो मशीन भारत में इस्तेमाल की जाती है, वो मज़बूत मशीनें हैं और मुझे नहीं लगता कि उन्हें हैक किया जा सकता है.”
उन्होंने कहा, “ऐसा हो सकता है कि पोलिंग बूथ पर मशीन चलाने वाले ठीक से इसे चला ना पाएं लेकिन मतदान से पहले इन मशीनों को कड़ी जांच से गुजरना पड़ता है.” कुछ लोगों ने इसमें पेपर ट्रेल की मांग की थी और इसे बाद में जोड़ दिया गया.
शारदा यूनिवर्सिटी में शोध और तकनीकी विकास विभाग में प्रोफेसर अरुण मेहता कहते हैं, “ईवीएम में कंप्यूटर की ही प्रोग्रामिंग है और उसे बदला भी जा सकता है. आप इसे बेहतर बनाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन ये भी देखें कि हैकर्स भी बेहतर होते जा रहे हैं.”
EVM पर चुनाव आयोग का रुख:
गोवा के मुख्य चुनाव अधिकारी कुणाल ने ईवीएम के बारेम दावा किया था कि यह पूरी तरह से ‘फ़ूल प्रूफ़’ है कहीं किसी तरह की गड़बड़ी किसी सूरत में नहीं की जा सकती है.
“ईवीएम चिप आधारित मशीन है, जिसे सिर्फ़ एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है. उसी प्रोग्राम से तमाम डेटा स्टोर किए जा सकते हैं. लेकिन इन डेटा की कहीं से किसी तरह की कनेक्टिविटी नहीं है.” लिहाजा, ईवीएम में किसी तरह की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग मुमकिन ही नहीं है. इसलिए यह पूरी तरह सुरक्षित है.
ईवीएम के प्रयोग के फायदे:
1. ईवीएम के प्रयोग से मतपत्रों की छपाई और कर्मचारियों के परिश्रमिकों पर होने वाले लाखों रुपयेके खर्च को काम किया जा सकता है.
2. मतपेटियों की तुलना में ईवीएम को लाना-ले जाना बहुत आसान है.
3. ईवीएम से मतगणना बहुत तेजी से हो सकती है.
4. निरक्षर लोगों द्वारा भी सही मतदान किया जा सकता है.
5. ईवीएम के प्रयोग से फर्जी मतदान में कमी आती है.
6. ईवीएम में परिणाम साथ के साथ स्टोर हो जाते हैं.
7. एक ईवीएम को १५ साल तक प्रयोग में लाया जा सकता है.
8. ईवीएम में डाटा को १० साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
9. यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक नहीं होती तो ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव कराये जा सकते हैं।
10. एक ईवीएम मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है।
क्या हैं ईवीएम के विरोधियों के तर्क?
1. EVM का सॉफ्टवेर सुरक्षित नही है – EVM मशीन निर्माता कंपनी BEL एंड ECIL ने इस टॉप सीक्रेट (EVM मशीन के सॉफ्टवेर कोड ) को दो विदेशी कंपनियो के साथ साझा किया है.
2. ईवीएम का हार्डवेयर भी सुरक्षित नहीं है – ईवीएम में जो साफ्ट्वेयर इस्तेमाल किया जाता है वो वोटिंग मशीन के लिए बनाया गया है अगर वो किसी सॉफ्टवेर हमले से नष्ट होता है तो नया सॉफ्टवेर तैयार किया जा सकता है और यही बात इसके हार्डवेयर पर भी लागू होती है.
3. EVMs को हैक किया जा सकता है- क्योंकि ईवीएम में आसानी से सॉफ्टवेर या हार्डवेयर चिप को बदला जा सकता है.
4. सांठगांठ और घपलेबाजी होने का खतरा – चुनाव अधिकारी, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन बनाने वाली कंपनी ,भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड(BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ़ इन्डिया (ECIL), विदेशी कंपनियां जो EVM के लिए चिप सप्लाई करती है , निजी कंपनियां जो ईवीएम का रखरखाव और जाँच पड़ताल करती है (जिसमे से कुछ कंपनियां राजनेता ही चला रहे है ) इनमे से कोई भी सांठगांठ और घपलेबाज़ी में शामिल हो सकती है |
5. ईवीएम का इकठ्ठे करने का तरीका और मतगणना चिंता का विषय – ईवीएम जिला मुख्यालय पर जमा होती है. “हर कोई बारीकी से मतदान देखता है. लेकिन कोई भी मतगणना को नजदीकी से नही देखता. सिर्फ तीन घंटे में मतगणना का खेल खत्म हो जाता है! परिणाम और विजेताओं की घोषणा करने के लिए भीड़ में, कई गंभीर खामियों मतगणना की प्रक्रिया में अनदेखी की जाती है .
6. अविश्वासी मतदान – सिर्फ कांग्रेस या आम आदमी पार्टी ही नहीं, समय समय पर अधिकांश पार्टियां जैसे भाजपा, कांग्रेस, वामपंथी दल, तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), अन्नाद्रमुक, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जनता दल (यूनाइटेड) आदि ईवीएम का विरोध कर चुकी हैं.
7. चुनाव आयोग की ईवीएम के बारे में तकनीकी जानकारी बहुत कम है. – चुनाव आयोग ने बिना इसकी प्रयोगी तकनीक जांच कराये ईवीएम का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया था.
8. जनता और राजनीतिक पार्टियों का ईवीएम से प्राप्त नतीजों पर भरोसा मुश्किल – पुराने ईवीएम अपनी ही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के विपरीत लोकसभा चुनाव में इस्तेमाल किये गये , क्यों यह स्पष्ट नहीं होता.?