हरि हरि रूप दियो नारद को में कौन सा अलंकार है?
hari hari roop diyo narad ko mein kaun sa alankar haiहरि हरि रूप दियो नारद को
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जब किसी वाक्य में एक ही शब्द दो बार आए और दोनों ही बार उसके अर्थ भिन्नभिन्न हो तो वहाँ यमक अलंकार होता है।
प्रस्तुत पंक्ति में यमक अलंकार का भेद:
इस पंक्ति में अभंग पद यमक अलंकार है।
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यमक अलंकार का अन्य उदाहरण:
आप यमक अलंकार को अच्छी तरह से समझ सकें इसलिए यमक अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं:
‘’फेरिकों नारि कहयो चली नारी सूटेरन के मइस हेर्न लगी’’ इसी प्रकार इस पंक्ति में हरि हित शब्द में यमक अलंकार है।
मालाफेरत जग मुआ मिटा न मन का फेर। कर का मनका छोड़ के मन का मनका फेर.। इस पंक्ति में मनका शब्द की आवृति हुई है और दोनों बार अलग अलग अर्थमें प्रयुक्त हुआ है। अतः; यह यमक अलंकार का उदाहरण है।
काव्य पंक्ति में अन्य अलंकार –
अलंकार के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर जाएँ:
अलंकार – परिभाषा, भेद एवं उदाहरण
- “या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी। ” में कौन सा अलंकार है?
- ” पास ही रे हीरे की खान ,खोजता कहां और नादान? में कौन सा अलंकार है?
- ऊंचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी, ऊंचे घोर मन्दर ले अन्दर रहाती है। में कौन सा अलंकार है?
- ऊधौ जोग जोग हम नाही। अबला सारज्ञान कह जानै, कैसै ध्यान धराही। में कौन सा अलंकार है?
- ऐसे दुरादुरी ही सों सुरत जे करैं जीव, साँचो तिन जीवन को जीवन है जग में। में कौन सा अलंकार है?
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