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जंगल जंगल शौक़ से घूमो – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

जंगल जंगल शौक़ से घूमो – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो
‘इंशा’-जी हम पास भी लेकिन रात की रात क़याम करो

अश्कों से अपने दिल को हिकायत दामन पर इरक़ाम करो
इश्क़ में जब यही काम है यार वले के ख़ुदा का नाम करो

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कब से खड़े हैं बर में ख़िराज-ए-इश्क़ के लिए सर-ए-राहगुज़ार
एक नज़र से सादा-रुख़ो हम सादा-दिलों को ग़ुलाम करो

दिल की मताअ’ तो लूट रहे हो हुस्न की दी है ज़कात कभी
रोज़-ए-हिसाब क़रीब है लोगो कुछ तो सवाब का काम करो

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‘मीर’ से बैअ’त की है तो ‘इंशा’ मीर की बैअ’त भी है ज़रूर
शाम को रो रो सुब्ह करो अब सुब्ह को रो रो शाम करो

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें की ग़ज़लें

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच
‘इंशा’ जी क्या माल लिए बैठे हो तुम बाज़ार के बीच

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पीना-पिलाना ऐन गुनह है जी का लगाना ऐन हवस
आप की बातें सब सच्ची हैं लेकिन भरी बहार के बीच

ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच

ख़ार-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक तो जानें एक तुझी को ख़बर न मिले
ऐ गुल-ए-ख़ूबी हम तो अबस बदनाम हुए गुलज़ार के बीच

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मिन्नत-ए-क़ासिद कौन उठाए शिकवा-ए-दरबाँ कौन करे
नामा-ए-शौक़ ग़ज़ल की सूरत छपने को दो अख़बार के बीच

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