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उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस से अचानक हुई 66 से अधिक बच्चों की मौत ने देश भर को दहला दिया. पूरे देश से एक स्वर में दोषियों को पकड़ने की मांग हुई परन्तु योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बच्चों को बचाने वाले डॉक्टर कफील अहमद खान पर ही एक्शन ले लिया. सोशल मीडिया पर तरह तरह के आरोपों का दौर शुरू हो गया.
परन्तु यह कोई नहीं जानता कि इन आरोपों में कितना दम है. आइये जानते हैं कि उत्तरप्रदेश की सरकार ने क्या सचमुच दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की है या फिर एक नए विवाद को जन्म दे कर मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाया है.
सोशल मीडिया पर उत्तरप्रदेश सरकार के समर्थकों ने कमोबेश एक जैसे ही आरोप डॉक्टर कफील पर लगाए हैं. जिनकी पड़ताल हिन्दीवार्ता ने विस्तृत रूप से की.
1. प्राइवेट क्लिनिक चलाते हैं
खान पर आरोप है कि वो अपना प्राइवेट क्लिनिक चलाते हैं, ये आरोप हास्यपद इसलिए हैं क्यों कि देश का कानून उन्हें इस बात कि इजाजत देता है.
अगस्त 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारी डॉक्टर द्वारा अपना प्राइवेट क्लिनिक चलना कोई अपराध नहीं. भारत का लगभग हर सरकारी डॉक्टर अपना प्राइवेट क्लिनिक चलाता है.
हालाँकि एक बात गौर करने वाली है कि कुछ ही दिनों पहले डॉक्टर कफील ने शपथपत्र दायर किया था जिसमें साफ़ साफ़ लिखा था कि वह उत्तरप्रदेश सरकार के अधीन कार्य करते समय प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करेंगे.
अब यह देखना महत्वपूर्ण है कि क्या उन्होंने इसका उल्लंघन किया? यदि हाँ तो यह एक दोष है परन्तु बच्चों की मौत का इससे क्या वास्ता?
यहां सबसे बड़ी बात ये है कि डॉक्टर कफील के क्लिनिक चलाने की वजह से बच्चों की मौतें नहीं हुई. हादसे के समय डॉक्टर कफील वहाँ मौजूद थे और मरीजों की देखभाल कर रहे थे और इसके पर्याप्त सबूत भी हैं.
2. रेप के आरोपी हैं
एक आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि डॉक्टर कफील पर रेप के आरोप हैं. हालाँकि इन सभी आरोपों को कोर्ट ने निराधार बता कर बंद कर दिया था परन्तु किसी व्यक्ति के जीवन की घटनाओं को इस दुर्घटना से जोड़कर देखना बेवकूफी नहीं तो और क्या है?
3. ऑक्सीजन सिलिंडर की चोरी किया करते थे
डॉक्टर खान पर यह भी आरोप है कि वह पूर्व में BRD अस्पताल से ऑक्सीजन की चोरी किया करते थे. यदि ऐसा है तो आखिर आजतक उनपर कोई केस दर्ज क्यों नहीं हुआ. और सबसे अहत्वपूर्ण बात ये है कि आखिर वो अस्पताल के बड़े ऑक्सीजन टैंक से ऑक्सीजन चुराते कैसे थे?
क्या वो लिक्विड ऑक्सीजन को बोतल में भर के घर ले जाते थे ?
क्यूंकि अस्पताल के जंबो सिलिंडर को उठाने के लिए तो ट्रक की आवशयकता पड़ती और ये काम चोरी छुपे तो किया नहीं जा सकता है.
4. खुद को मीडिया के सामने प्रमोट किया
योगी समर्थकों के अनुसार डॉक्टर कफील ने खुद को मीडिया के सामने पेश किया और बिना कोई काम किये मीडिया में खुद को मसीहा की तरह पेश किया.
परन्तु गोरखपुर के BRD अस्पताल के लोगों से बात करने पर साफ़ पता चलता है कि जब हॉस्पिटल में आधी रात को हाहाकार मचा तब डॉक्टर कफील सीधा वहां पहुंचे और मदद करने में आगे रहे. रात के 3 बजे जब मीडिया अस्पताल पहुंची तब भी कफील वहां पाए गए.
सीमा सुरक्षा बल ने भी इसपर पर्दाफाश किया है. SSB के डग के अनुसार त्रासदी के दिन डॉक्टर कफील उनके पास आये और उनसे ट्रकों की मांग की ताकि ऑक्सीजन सिलेंडरों को अस्पताल तक पहुँचाया जा सके. 10 अगस्त की रात को SSB के DIG ने ट्रक के साथ 11 जवान भी भेजे. यह सब डॉक्टर कफील के कहने पर हुआ.
कफील के प्रयासों से ही 3 जंबो सिलेंडरों की व्यवस्था हो सकी वरना मरने वालों की संख्या अधिक होती.
5. जानकारी रहने के बावजूद ऑक्सीजन वेंडर को पेमेंट नहीं किया
कुछ आरोप यह भी लग रहे हैं कि डॉक्टर कफील परचेज कमिटी के भी सदस्य थे और उन्होंने ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी के बकाया राशि की जानकारी सरकार को नहीं दी जिससे ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो गयी.
परन्तु योगी जी और उत्तरप्रदेश के स्वस्थ्य मंत्री बार बार यह कह रहे हैं कि अस्पताल में मौतें ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से नहीं हुई. तो फिर कफील के सप्लाई रोकने वाली बात का क्या औचित्य है?
परन्तु एक और बात सामने आयी है कि ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली पुष्पा सेल्स ने बकाया राशि के भुगतान के लिए बार बार पत्र लिखा है और ये पत्र उत्तरप्रदेश सरकार के बाल विकास मंत्री को भी लिखा गया है.

हर पत्र की एक कॉपी गोरखपुर के जिलाधिकारी को भी भेजी गयी थी. इतना सब होने के बावजूद योगी सरकार इस बात से अनजान कैसे थी?
सबसे बड़ा खुलासा तो 30 जुलाई को शहर के अखबार हिन्दुस्तान ने साफ साफ़ यह चेतावनी दी थी कि BRD अस्पताल की ऑक्सीजन की सप्लाई बंद की जा सकती है.

इन सब के बावजूद योगी सरकार के मंत्री या प्रदेश के अधिकारीयों ने कोई एक्शन नहीं लिया और जिम्मेदार कफील खान को ठहरा दिया गया?