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प्रातः जागरण क्यों?

Subah jaldi uthane ke labh

हमारे दैनिकचर्या का आरम्भ प्रातः ब्रहमुहूर्त्त में जागरण से होता है। शास्त्रों की आज्ञा है – ‘ब्राहौ मुहूर्त्त बुध्यते’अर्थात् प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त में उठना चाहिये। ब्रह्ममुहूर्त्त की व्याख्या करते हुए शास्त्रों में बतलाया गया है कि रात्रि के अंतिम प्रहर का जो तीसरा भाग है, उसी को ब्रह्ममुहूर्त्त कहते हैं। निद्रा त्याग के लिये यही समय शास्त्र सम्मत है। प्रातः जागरण का यह नियम हमारी दैनिकचर्या या अत्यन्त महत्वपूर्ण नियम है। समस्त दैनिक क्रियाओं की सफलता या असफलता बहुत कुछ इसी पर निर्भर है।
कभी सूक्ष्म दृष्टि से इस समय का अवलोकन किया जाय तो आप देखेंगे कि उस समय का प्राकृतिक वातावरण कितना मधुर और निराला होता है। प्रातः काल होते ही कमल खिल उठते हैं, भ्रमरावली गुंजार करने लग जाती है, पक्षी अपने कलरव से उपवनों एवं उद्यानों को मुखरित कर देते हैं। शीतल मंद सुगंध पवन अपने आवरण में मकरन्द की मादक गंध लिये डोलने लग जाती है। सचमुच ही समस्त सृष्टि एक नवीन जीवन की अनुभूति से खिल उठती है। और तो और अधम जीव मुर्गा भी प्रातः होने के साथ ही तार स्वर में बाँग देकर अपने जग जाने का प्रमाण देना आरम्भ कर देता है। किन्तु अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने वाला आज का मानव प्रकृति की अवहेलना करते हुये सूर्य चढे तक बिस्तर पर कवरटें लेते नहीं अघाता। उसका प्रातः काल तो तब होता है, जब 7 बजे खिड़की से धूप आने लगती है एवं रेडियो बोल उठता है कि ‘बड़ी देर भई नंद लाला’। तब महाशय जी रेडियो की मधुर झंकार सुनकर अंगडाई लेते हुये उठते हैं एवं चाय की फरमाईश करते हैं।
वर्ण कीर्ति मर्ति लक्ष्मी स्वास्थ्यमायुष्च विदन्ति,
ब्राह्मे मुहूत्र्ते संजाग्रच्छ्यि व पंकजं यथा,
अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त्त में उठने से पुरूष को सौन्दर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, वायु आदि की प्राप्ति होती है। उसका शरीर कमल के सदृष्य सुन्दर हो जाता है। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण रात्रि के बाद प्रातः जब भगवान सूर्य उदय होने वाले होते हैं तो उनका चैतन्यमय तेज आकाश मार्ग द्वारा विस्तृत होने लगता है। यदि मनुष्य सजग होकर स्नानादि से निवृत्त होकर उपस्थान एवं जग द्वारा अन्न प्राणाधिदेव भगवान सूर्य की किरणों से अपने प्राणों में अतुल तेज का आहान करे तो वह पुरूष दीर्घजीवी हो जाता है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार भी समस्त ब्रह्मण्ड में वायु का विभाग साधारणतया निम्न क्रम में किया जाता हैः-
आक्सीजन (प्राणपद वायु) – 21 प्रतिशत
कार्बनडाइ आक्साइड (दूषित वायु) – 6 प्रतिशत
नाईट्रोजन (नद्र जल) – 73 प्रतिशत
कुल योग – 100 प्रतिशत
विज्ञान के अनुसार सम्पूर्ण दिन वायु का यही प्रवहन क्रम रहता है किन्तु प्रातः और सायं जब संधि काल होता है तब इस क्रम में कुछ परिवर्तन हो जाता है। सायंकाल जगत्प्राणप्रेरक भगवान सूर्य के अस्त हो जाने से आक्सीजन अपने स्वाभाविक स्तर से मंद पड़ जाती है और मनुष्य की प्राण शक्ति भी क्षीण हो जाती है, उसे विश्राम की आवश्यकता अनुभव होने लगती है। इसी पकार प्रायः काल के सूर्योदय के साथ उस वायु स्तर में वृद्धि होना स्वाभाविक है। इसीलिये यदि मनुष्य निद्रामुक्त होकर इस समय वायु का सेवन करे तो उसका स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो जायेगा। यह ध्रुव सत्य है। वास्तव में दीर्घ जीवन का एक ही मूलमंत्र है – जल्दी सोओ जल्दी उठो। अर्थात् जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ, धनवान और बुद्धिमान बना देता है। यह लेख विशेषतः समाज की युवा पीढी के लिये लिखा गया है जो देर रात से सोने और सुबह देर से उठने के आदी हो गये हैं। किन्तु यह आदत आज की पीढ़ी के लिये सबसे बड़ा अभिशाप है। सुबह देर से उठने से दिन भर का कार्यक्रम अस्त व्यस्त हो जाता है। देर होने की वजह से समस्त कामों में हड़बड़ी से कोई भी काम सुचारू रूप से नहीं हो पाता। कहा भी गया है – ‘जल्दी काम शैतान का’। ऊपर लिखित कारणों से स्पष्ट हो जाता है कि देर से उठना स्वस्थ के लिये तो हानिकारक है ही बल्कि देर से उठने वाला जिंदगी की दौड़ में भी पिछड़ जाता है – यह ध्रुव सत्य है।

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