इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

इक भीक के दोनों कासे हैं इक प्यास के दोनो प्यासे हैं हम खेती हैं तुम बादल हो हम नदियाँ हैं तुम सागर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

ये दिल है कि जलते सीने में इक दर्द का फोड़ा अल्लहड़ सा ना गुप्त रहे ना फूट बहे कोई मरहम हो कोई निश्तर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम साँझ समय की छाया हैं तुम चढ़ती रात के चन्द्रमाँ हम जाते हैं तुम आते हो फिर मेल की सूरत क्यूँकर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अब हुस्न का रुत्बा आली है अब हुस्न से सहरा ख़ाली है चल बस्ती में बंजारा बन चल नगरी में सौदागर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

जिस चीज़ से तुझ को निस्बत है जिस चीज़ की तुझ को चाहत है वो सोना है वो हीरा है वो माटी हो या कंकर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अब 'इंशा'-जी को बुलाना क्या अब प्यार के दीप जलाना क्या जब धूप और छाया एक से हों जब दिन और रात बराबर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो

एक और शायरी  

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

सच अच्छा पर उस के जिलौ में ज़हर का है इक प्याला भी पागल हो क्यूँ नाहक़ को सुक़रात बनो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

उन का ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है सर-आँखों पर सूरज ही को घूमने दो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

महबस में कुछ हब्स है और ज़ंजीर का आहन चुभता है फिर सोचो हाँ फिर सोचो हाँ फिर सोचो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

गर्म आँसू और ठंडी आहें मन में क्या क्या मौसम हैं इस बगिया के भेद न खोलो सैर करो ख़ामोश रहो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

आँखें मूँद किनारे बैठो मन के रक्खो बंद किवाड़ 'इंशा'-जी लो धागा लो और लब सी लो ख़ामोश रहो