इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

जोग बिजोग की बातें झूठी सब जी का बहलाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

जोग बिजोग की बातें झूठी सब जी का बहलाना हो फिर भी हम से जाते जाते एक ग़ज़ल सुन जाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

सारी दुनिया अक्ल की बैरी कौन यहां पर सयाना हो, नाहक़ नाम धरें सब हम को दीवाना दीवाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

तुम ने तो इक रीत बना ली सुन लेना शर्माना हो, सब का एक न एक ठिकाना अपना कौन ठिकाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

नगरी नगरी लाखों द्वारे हर द्वारे पर लाख सुखी, लेकिन जब हम भूल चुके हैं दामन का फैलाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

तेरे ये क्या जी में आई खींच लिये शर्मा कर होंठ, हम को ज़हर पिलाने वाली अमृत भी पिलवाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम भी झूठे तुम भी झूठे एक इसी का सच्चा नाम, जिस से दीपक जलना सीखा परवाना मर जाना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

सीधे मन को आन दबोचे मीठी बातें सुन्दर लोग, 'मीर', 'नज़ीर', 'कबीर', और 'इन्शा' सब का एक घराना हो

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

ऐ मुँह मोड़ के जाने वाली, जाते में मुसकाती जा

एक और शायरी

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

ऐ मुँह मोड़ के जाने वाली, जाते में मुसकाती जा मन नगरी की उजड़ी गलियाँ सूने धाम बसाती जा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दीवानों का रूप न धारें या धारें बतलाती जा मारें हमें या ईंट न मारें लोगों से फ़रमाती जा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

और बहुत से रिश्ते तेरे और बहुत से तेरे नाम आज तो एक हमारे रिश्ते मेहबूबा कहलाती जा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

पूरे चाँद की रात वो सागर जिस सागर का ओर न छोर या हम आज डुबो दें तुझको या तू हमें बचाती जा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम लोगों की आँखें पलकें राहों में कुछ और नहीं शरमाती घबराती गोरी इतराती इठलाती जा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दिलवालों की दूर पहुँच है ज़ाहिर की औक़ात न देख एक नज़र बख़शिश में दे के लाख सवाब कमाती जा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

और तो फ़ैज़ नहीं कुछ तुझसे ऐ बेहासिल ऐ बेमेहर इंशाजी से नज़में ग़ज़लें गीत कबत लिखवाती जा